Shri Ram : श्रीराम के जन्म पर क्या कहता है इतिहास?
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आस्था संदेह से परे होती है और श्रीराम (Shri Ram) का नाम तो वैसे भी सारे संदेह मिटाने वाला है। रामनवमी पर देखते हैं कि धार्मिक के अलावा ऐतिहासिक संदर्भों में कहां-कब आए हैं भगवान राम।
राम (Shri Ram) कौन थे? वह एक ऐतिहासिक पुरुष थे या ईश्वर के अवतार? क्या रामायण (Ramayan) की घटनाएं उसी रूप में घटित हुई थीं, जैसी हमें सुनाई जाती हैं? और सबसे अहम सवाल - भगवान राम (Shri Ram) का जन्म अयोध्या में कब हुआ था? ये ऐसे प्रश्न हैं जो सदियों से विद्वानों, आस्थावानों और इतिहासकारों के बीच चर्चा का विषय बने हुए हैं।
अगर हम ऐतिहासिक तथ्यों की ओर रुख करें, तो राम (Shri Ram) के बारे में सबसे पुराने साक्ष्य पहली सदी के आसपास के मिलते हैं। महाराष्ट्र के सातवाहन शिलालेख में राम का उल्लेख एक देवता के रूप में मिलता है। यही नहीं, मध्य प्रदेश के भरहुत स्तूप और आंध्र प्रदेश के नागार्जुनकोंडा स्तूप में भी बौद्ध रामकथाओं का अंकन हुआ है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि ये सभी स्थल उत्तर भारत में नहीं, बल्कि भारत के मध्य और दक्षिणी हिस्सों में स्थित हैं। इसका अर्थ यह निकाला जा सकता है कि राम की कथा (Ram Katha) का प्रचार-प्रसार पूरे भारतवर्ष में बहुत पहले से था, और संभव है कि पहली सदी से भी पहले राम का अस्तित्व रहा हो।
हालांकि यह जरूरी नहीं कि उस समय की रामकथा वही हो, जो आज हमें वाल्मीकि रामायण (Valmiki Ramayan) में पढ़ने को मिलती है। समय के साथ-साथ हर समाज और क्षेत्र ने अपनी लोककथाओं में राम को अलग-अलग स्वरूपों में गढ़ा। यही कारण है कि राम (Shri Ram) की कथा एक सांस्कृतिक विरासत के रूप में भारत के कोने-कोने में फैली हुई है, और हर भाषा, हर परंपरा में उसका अपना रूप है।
10 हजार या 7 हजार?
राम (Shri Ram) के जन्म का काल और स्थान इतिहास की दृष्टि से अब भी रहस्य बना हुआ है। कुछ विद्वान राम को 10 हजार वर्ष पूर्व का मानते हैं, कुछ 7 हजार वर्ष पूर्व का, जबकि कुछ मानते हैं कि जब राम ईश्वर हैं, तो उनके जन्म-मरण की अवधारणा ही निरर्थक है। वेदों और उपनिषदों में राम का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। राम के बारे में सबसे प्राचीन और व्यवस्थित कथा हमें वाल्मीकि रामायण (Valmiki Ramayan) में मिलती है, जिसे आमतौर पर रामकथा का मूल स्रोत माना जाता है।
हिंदू मान्यता के अनुसार राम त्रेता युग के थे। उस काल के जब पृथ्वी पर धर्म और अधर्म के बीच संघर्ष चरम पर था। महाभारत में भी पांडवों द्वारा रामकथा (Ram Katha) सुनाए जाने का उल्लेख मिलता है। इससे अनुमान लगाया जाता है कि राम, कृष्ण से भी पहले हुए होंगे। लेकिन 'कब', इस प्रश्न का उत्तर इतिहास अब तक नहीं दे पाया है।
वाल्मीकि रामायण के काल निर्धारण को लेकर भी मतभेद हैं। कुछ पांडुलिपियां संस्कृत की उस शैली में हैं, जो वैदिक नहीं बल्कि पाणिनि के बाद की संस्कृत है। पाणिनि का काल बुद्ध के समकालीन माना जाता है, यानी लगभग 500 ईसा पूर्व। इसका मतलब हुआ कि आज हमारे पास उपलब्ध रामायण की अधिकांश पांडुलिपियां ढाई हजार साल से पुरानी नहीं हैं।
कई भाषाओं में राम कथा (Ram Katha)
तमिल संगम साहित्य, जो लगभग 2000 साल पुराना है, उसमें भी राम का उल्लेख मिलता है। कालिदास का रघुवंश, कंबन की तमिल रामायण, और फिर बंगाली, कन्नड़, असमी, ओड़िया जैसी भाषाओं में रामकथा के अनेक रूप मौजूद हैं। ये सब इस ओर संकेत करते हैं कि राम कथा न सिर्फ धार्मिक ग्रंथों में, बल्कि लोक परंपराओं और साहित्य में भी रची-बसी है।
जैन ग्रंथों में भी राम का उल्लेख मिलता है। लगभग 500 ईस्वी के आसपास लिखे गए ग्रंथों में उन्हें पद्म कहा गया है और बताया गया है कि वे 20वें तीर्थंकर मुनिसुव्रत के समकालीन थे। जैन परंपरा के अनुसार यह काल लाखों वर्ष पूर्व का था, जो आधुनिक इतिहास के मापदंडों से मेल नहीं खाता। इससे स्पष्ट होता है कि राम के विषय में केवल ऐतिहासिक नहीं, बल्कि गहरी धार्मिक और दार्शनिक आस्थाएं भी जुड़ी हुई हैं।
क्या वैदिक काल के बाद हुए राम?
पुरातात्विक दृष्टि से भी कुछ संकेतक मिले हैं, जो राम की कथा के समयकाल को लेकर रोशनी डालते हैं। उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में एक ऐसा श्मशान मिला है, जिसमें तांबे के अस्त्र-शस्त्र और एक प्राचीन रथ के अवशेष पाए गए। वैज्ञानिकों ने इसे 2000 ईसा पूर्व का माना है। यह काल वैदिक युग से भी पूर्व का है, और उस समय शवों को जलाने नहीं बल्कि दफनाने की परंपरा थी। रामायण में वर्णित है कि राजा दशरथ का अंतिम संस्कार वैदिक विधियों से हुआ था। क्या इसका अर्थ यह है कि राम वैदिक काल के बाद के हैं? संभव है, लेकिन इसकी कोई ठोस पुष्टि अब तक नहीं हो पाई है।
रामायण (Ramayan) में लंका जाने के लिए समुद्र पर बने सेतु का वर्णन भी आता है, जिसे आज 'रामसेतु' कहा जाता है। यह संरचना भारत के तमिलनाडु से श्रीलंका के उत्तर-पश्चिमी किनारे तक फैली है। कुछ वैज्ञानिक इसे एक प्राकृतिक संरचना मानते हैं, जबकि कई लोग इसे राम द्वारा बनवाया गया पुल मानते हैं।
सम्राट अशोक के समय के अभिलेखों और श्रीलंका के प्राचीन पाली ग्रंथों, जैसे दीपवंश और महावंश में रामसेतु का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है, जबकि वे श्रीलंका में बौद्ध धर्म के आगमन की बात करते हैं। इससे भी यह निष्कर्ष नहीं निकलता कि रामसेतु का अस्तित्व नहीं था, बल्कि यह केवल दर्शाता है कि उस समय के लेखकों ने इसे आवश्यक नहीं समझा।
क्या संकेत देते हैं रथ?
राम-रावण युद्ध का वर्णन भी ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाता है। रामायण (Ramayan) के अनुसार, रावण रथ पर था जबकि राम पैदल थे। फिर देवताओं ने उनके लिए एक दिव्य रथ की व्यवस्था की। परंतु ऐतिहासिक तथ्य यह है कि ईसा पूर्व 1500 से पहले रथों का प्रयोग विश्व के किसी भी कोने में प्रमाणित नहीं है। इस आधार पर कुछ विद्वान मानते हैं कि यदि राम ने रथ का उपयोग किया था, तो वह 1500 ईसा पूर्व के बाद ही हुए होंगे। लेकिन यहां फिर वही प्रश्न उठता है, क्या यह कथा पूरी तरह ऐतिहासिक है या इसमें प्रतीकों और लोक-कल्पनाओं का भी समावेश है?
आखिर में बात फिर वहीं लौटती है, आस्था। भगवान राम जनमानस की आत्मा में बसे हैं। राम केवल एक ऐतिहासिक चरित्र नहीं, बल्कि संस्कृति, नैतिकता, धर्म और मर्यादा के प्रतीक हैं। उनके अस्तित्व को किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं, क्योंकि वे हर भारतीय के मन में रामनाम के रूप में जीवित हैं।
इसलिए जब सवाल उठे कि राम कब पैदा हुए थे, या रामायण (Ramayan) में लिखी हर बात ऐतिहासिक है या नहीं, तो याद रखना चाहिए कि राम इतिहास से ज्यादा जीवन में हैं, और जीवन में जो टिकता है, वही सच्चा होता है।
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